In 1986, Delhi Court allowed a pamphlet which had hateful contents of Quran. Contents of that pamphlet are below.
कुरान की चौबीस आयतें और उन पर दिल्ली कोर्ट का फैसला--
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श्री इन्द्रसेन (तत्...
कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा, दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु.मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा, जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस २३५ए, ...१ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली ) में मुकदमा चलाया गया।
1- ''फिर, जब रमजान के महीने बीत जाऐं, तो 'मुश्रिको' [मूर्तिपूजक]को जहाँ-कहीं पाओ ‘कत्ल करो’ , पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे 'तौबा' कर लें 'नमाज' कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।'' (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८) |
2- ''हे 'ईमान' लाने वालो! 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१) |
3- ''निःसंदेह 'काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।'' (५.४.१०१. पृ. २३९) |
4- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुमसे सख्ती पायें।'' (११.९.१२३ पृ. ३९१) |
5- ''जिन लोगों ने हमारी ''आयतों'' का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं'' (५.४.५६ पृ. २३१) |
5- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को भी अपना मित्र मत बनाओ यदि वे
ईमान की अपेक्षा 'कुफ्र' को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे
ही लोग जालिम होंगे'' (१०.९.२३ पृ. ३७०) |
7- ''अल्लाह 'काफिर' लोगों को मार्ग नहीं दिखाता'' (१०.९.३७ पृ. ३७४) |
8- ''हे 'ईमान' लाने वालो! उन्हें (किताब को न मानने वालों) और काफिरों को अपना मित्र मत बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम 'ईमान' वाले हो।'' (६.५.५७ पृ. २६८) |
9- ''फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे ,पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।'' (२२.३३.६१ पृ. ७५९)|
10- ''(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम ,अल्लाह के सिवा पूजते थे 'जहन्नम' का ईधन हो। तुम अवश्य “उसके[ज़ह्न्नम ] घाट उतरोगे'' |
11- 'और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके 'रब' की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह
उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।'' (२१.३२.२२ पृ. ७३६)|
12- 'अल्लाह ने तुमसे बहुत सी 'गनीमतों' का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,'' (२६.४८.२० पृ. ९४३)
13- ''तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ'' (१०.८.६९. पृ. ३५९)|
14- ''हे नबी! 'काफिरों' और 'मुनाफिकों' के साथ ‘जिहाद’ करो, और उन पर सख्ती करो, उनका ठिकाना 'जहन्नम' और बुरी जगह है जहाँ पहुँचाना है '' (२८.६६.९. पृ. १०५५)|
15- 'तो अवश्य हम 'कुफ्र' करने वालों को ‘’यातना का मजा चखायेंगे’’, और अवश्य ही हम उन्हें ‘’सबसे बुरा बदला देंगे’’ उस ‘’कर्म का जो वे करते थे।'' (२४.४१.२७ पृ. ८६५)|
16- ''यह बदला है, अल्लाह के शत्रुओं का ‘’(जहन्नम की) आग’’ । इसी में ‘’उनका सदा का घर’’ है, इसके बदले
में कि , हमारी 'आयतों' को इन्कार करते थे।'' (२४.४१.२८ पृ. ८६५) |
17- ''निःसंदेह अल्लाह ने 'ईमानवालों' (मुसलमानों)के लिए उनके प्राणों और उनके मालों को , इसके बदले में खरीद
लिया है, उनके लिए 'जन्नत' हैः जो अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।'' --(११.९.१११ पृ. ३८८) |
18- ''अल्लाह ने इन 'मुनाफिक' (कपटाचारी ) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और ‘’काफिरों’’[गैर इस्लामी लोग ] से ’’जहन्नम की आग’’ का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत दी,
उनके लिए ‘’स्थायी यातना है।'' (१०.९.६८ पृ. ३७९) |
19- ''हे नबी! 'ईमान वालों' (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो ,वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो, एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।'' (१०.८.६५ पृ. ३५८) |
20- ''हे 'ईमान' लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।'' (६.५.५१ पृ. २६७) |
21- ''किताब वालो '' जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न अन्तिम दिन पर, न उसे 'हराम' करते[मानते ] हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन [मज़हब ] को अपना 'दीन' बनाते हैं उनसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से 'जजीया' देने लगे।'' (१०.९.२९. पृ. ३७२) |
22- ''.......फिर हमने उनके बीच कयामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०) |
23- ''वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफिर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओ तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें ,तो उन्हें ‘’जहाँ कहीं पाओं पकड़ों’’ और ‘’उनका वध (कत्ल) करो’’ और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।'' (५.४.८९ पृ. २३७) |
24- ''उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और 'ईमान' वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा'' (१०.९.१४. पृ. ३६९) |
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं। , मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ''मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।''
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- ''कुरान मजीद'' की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने
की सम्भावना है।''
(ह. जेड. एस. लोहाट,मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६) |
कुरान की चौबीस आयतें और उन पर दिल्ली कोर्ट का फैसला--
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श्री इन्द्रसेन (तत्...
कालीन उपप्रधान हिन्दू महासभा, दिल्ली) और राजकुमार ने कुरान मजीद (अनु.मौहम्मद फारुख खां, प्रकाशक मक्तबा अल हस्नात, रामपुर उ.प्र. १९६६) की कुछ निम्नलिखित आयतों का एक पोस्टर छापा, जिसके कारण इन दोनों पर इण्डियन पीनल कोड की धारा १५३ए और २६५ए के अन्तर्गत (एफ.आई.आर. २३७/८३यू/एस २३५ए, ...१ पीसी होजकाजी, पुलिस स्टेशन दिल्ली ) में मुकदमा चलाया गया।
1- ''फिर, जब रमजान के महीने बीत जाऐं, तो 'मुश्रिको' [मूर्तिपूजक]को जहाँ-कहीं पाओ ‘कत्ल करो’ , पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। यदि वे 'तौबा' कर लें 'नमाज' कायम करें और, जकात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो। निःसंदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है।'' (पा० १०, सूरा. ९, आयत ५,२ख पृ. ३६८) |
2- ''हे 'ईमान' लाने वालो! 'मुश्रिक' (मूर्तिपूजक) नापाक हैं।'' (१०.९.२८ पृ. ३७१) |
3- ''निःसंदेह 'काफिर तुम्हारे खुले दुश्मन हैं।'' (५.४.१०१. पृ. २३९) |
4- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) उन 'काफिरों' से लड़ो जो तुम्हारे आस पास हैं, और चाहिए कि वे तुमसे सख्ती पायें।'' (११.९.१२३ पृ. ३९१) |
5- ''जिन लोगों ने हमारी ''आयतों'' का इन्कार किया, उन्हें हम जल्द अग्नि में झोंक देंगे। जब उनकी खालें पक जाएंगी तो हम उन्हें दूसरी खालों से बदल देंगे ताकि वे यातना का रसास्वादन कर लें। निःसन्देह अल्लाह प्रभुत्वशाली तत्वदर्शी हैं'' (५.४.५६ पृ. २३१) |
5- ''हे 'ईमान' लाने वालों! (मुसलमानों) अपने बापों और भाईयों को भी अपना मित्र मत बनाओ यदि वे
ईमान की अपेक्षा 'कुफ्र' को पसन्द करें। और तुम में से जो कोई उनसे मित्रता का नाता जोड़ेगा, तो ऐसे
ही लोग जालिम होंगे'' (१०.९.२३ पृ. ३७०) |
7- ''अल्लाह 'काफिर' लोगों को मार्ग नहीं दिखाता'' (१०.९.३७ पृ. ३७४) |
8- ''हे 'ईमान' लाने वालो! उन्हें (किताब को न मानने वालों) और काफिरों को अपना मित्र मत बनाओ। अल्ला से डरते रहो यदि तुम 'ईमान' वाले हो।'' (६.५.५७ पृ. २६८) |
9- ''फिटकारे हुए, (मुनाफिक) जहां कही पाए जाऐंगे ,पकड़े जाएंगे और बुरी तरह कत्ल किए जाएंगे।'' (२२.३३.६१ पृ. ७५९)|
10- ''(कहा जाऐगा): निश्चय ही तुम और वह जिसे तुम ,अल्लाह के सिवा पूजते थे 'जहन्नम' का ईधन हो। तुम अवश्य “उसके[ज़ह्न्नम ] घाट उतरोगे'' |
11- 'और उस से बढ़कर जालिम कौन होगा जिसे उसके 'रब' की आयतों के द्वारा चेताया जाये और फिर वह
उनसे मुँह फेर ले। निश्चय ही हमें ऐसे अपराधियों से बदला लेना है।'' (२१.३२.२२ पृ. ७३६)|
12- 'अल्लाह ने तुमसे बहुत सी 'गनीमतों' का वादा किया है जो तुम्हारे हाथ आयेंगी,'' (२६.४८.२० पृ. ९४३)
13- ''तो जो कुछ गनीमत (का माल) तुमने हासिल किया है उसे हलाल व पाक समझ कर खाओ'' (१०.८.६९. पृ. ३५९)|
14- ''हे नबी! 'काफिरों' और 'मुनाफिकों' के साथ ‘जिहाद’ करो, और उन पर सख्ती करो, उनका ठिकाना 'जहन्नम' और बुरी जगह है जहाँ पहुँचाना है '' (२८.६६.९. पृ. १०५५)|
15- 'तो अवश्य हम 'कुफ्र' करने वालों को ‘’यातना का मजा चखायेंगे’’, और अवश्य ही हम उन्हें ‘’सबसे बुरा बदला देंगे’’ उस ‘’कर्म का जो वे करते थे।'' (२४.४१.२७ पृ. ८६५)|
16- ''यह बदला है, अल्लाह के शत्रुओं का ‘’(जहन्नम की) आग’’ । इसी में ‘’उनका सदा का घर’’ है, इसके बदले
में कि , हमारी 'आयतों' को इन्कार करते थे।'' (२४.४१.२८ पृ. ८६५) |
17- ''निःसंदेह अल्लाह ने 'ईमानवालों' (मुसलमानों)के लिए उनके प्राणों और उनके मालों को , इसके बदले में खरीद
लिया है, उनके लिए 'जन्नत' हैः जो अल्लाह के मार्ग में लड़ते हैं तो मारते भी हैं और मारे भी जाते हैं।'' --(११.९.१११ पृ. ३८८) |
18- ''अल्लाह ने इन 'मुनाफिक' (कपटाचारी ) पुरुषों और मुनाफिक स्त्रियों और ‘’काफिरों’’[गैर इस्लामी लोग ] से ’’जहन्नम की आग’’ का वादा किया है जिसमें वे सदा रहेंगे। यही उन्हें बस है। अल्लाह ने उन्हें लानत दी,
उनके लिए ‘’स्थायी यातना है।'' (१०.९.६८ पृ. ३७९) |
19- ''हे नबी! 'ईमान वालों' (मुसलमानों) को लड़ाई पर उभारो। यदि तुम में बीस जमे रहने वाले होंगे तो ,वे दो सौ पर प्रभुत्व प्राप्त करेंगे, और यदि तुम में सौ हो तो, एक हजार काफिरों पर भारी रहेंगे, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं जो समझबूझ नहीं रखते।'' (१०.८.६५ पृ. ३५८) |
20- ''हे 'ईमान' लाने वालों! तुम यहूदियों और ईसाईयों को मित्र न बनाओ। ये आपस में एक दूसरे के मित्र हैं। और जो कोई तुम में से उनको मित्र बनायेगा, वह उन्हीं में से होगा। निःसन्देह अल्लाह जुल्म करने वालों को मार्ग नहीं दिखाता।'' (६.५.५१ पृ. २६७) |
21- ''किताब वालो '' जो न अल्लाह पर ईमान लाते हैं, न अन्तिम दिन पर, न उसे 'हराम' करते[मानते ] हैं जिसे अल्लाह और उसके रसूल ने हराम ठहराया है, और न सच्चे दीन [मज़हब ] को अपना 'दीन' बनाते हैं उनसे लड़ो यहाँ तक कि वे अप्रतिष्ठित (अपमानित) होकर अपने हाथों से 'जजीया' देने लगे।'' (१०.९.२९. पृ. ३७२) |
22- ''.......फिर हमने उनके बीच कयामत के दिन तक के लिये वैमनस्य और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा जो कुछ वे करते रहे हैं। (६.५.१४ पृ. २६०) |
23- ''वे चाहते हैं कि जिस तरह से वे काफिर हुए हैं उसी तरह से तुम भी 'काफिर' हो जाओ, फिर तुम एक जैसे हो जाओ तो उनमें से किसी को अपना साथी न बनाना जब तक वे अल्लाह की राह में हिजरत न करें, और यदि वे इससे फिर जावें ,तो उन्हें ‘’जहाँ कहीं पाओं पकड़ों’’ और ‘’उनका वध (कत्ल) करो’’ और उनमें से किसी को साथी और सहायक मत बनाना।'' (५.४.८९ पृ. २३७) |
24- ''उन (काफिरों) से लड़ों! अल्लाह तुम्हारे हाथों उन्हें यातना देगा, और उन्हें रुसवा करेगा और उनके मुकाबले में तुम्हारी सहायता करेगा, और 'ईमान' वालों लोगों के दिल ठंडे करेगा'' (१०.९.१४. पृ. ३६९) |
उपरोक्त आयतों से स्पष्ट है कि इनमें ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, कपट, लड़ाई-झगड़ा, लूटमार और हत्या करने के आदेश मिलते हैं। इन्हीं कारणों से देश व विश्व में मुस्लिमों व गैर मुस्लिमों के बीच दंगे हुआ करते हैं। , मैट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट श्री जेड़ एस. लोहाट ने ३१ जुलाई १९८६ को फैसला सुनाते हुए लिखाः ''मैंने सभी आयतों को कुरान मजीद से मिलान किया और पाया कि सभी अधिकांशतः आयतें वैसे ही उधृत की गई हैं जैसी कि कुरान में हैं। लेखकों का सुझाव मात्र है कि यदि ऐसी आयतें न हटाईं गईं तो साम्प्रदायिक दंगे रोकना मुश्किल हो जाऐगा। मैं ए.पी.पी. की इस बात से सहमत नहीं हूँ कि आयतें २,५,९,११ और २२ कुरान में नहीं है या उन्हें विकृत करके प्रस्तुत किया गया है।''
तथा उक्त दोनों महानुभावों को बरी करते हुए निर्णय दिया कि- ''कुरान मजीद'' की पवित्र पुस्तक के प्रति आदर रखते हुए उक्त आयतों के सूक्ष्म अध्ययन से यह स्पष्ट होता है कि ये आयतें बहुत हानिकारक हैं और घृणा की शिक्षा देती हैं, जिनसे एक तरफ मुसलमानों और दूसरी ओर देश के शेष समुदायों के बीच मतभेदों की पैदा होने
की सम्भावना है।''
(ह. जेड. एस. लोहाट,मेट्रोपोलिटिन मजिस्ट्रेट दिल्ली ३१.७.१९८६) |
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In March 1985, Chandmal Chopra filed a writ petition in the Calcutta High Court calling for a ban on the Quran under Sections 153A and 295A of the Indian Penal Code, and Section 95 of the Criminal Procedure Code because it “promotes disharmony, feeling of enmity, hatred and ill-will between different religious communities and incites people to commit violence and disturb public tranquillity….”
The petition was dismissed in May 1985, but riots ensued in many parts of India and also across the border in Bangladesh, where 12 Hindus, mostly poor, were killed and over a hundred injured (The Statesman, May 13th, 1985). Sita Ram Goel co-authored a book with Chopra the following year, detailing the entire story of how the petition came to be submitted, dismissed, and how “secular India” rallied to silence any debate over the issue.
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